हममें बहुत से लोग शायद कर्म या भाग्य को न भी मानें, पर हम सबका अधिकार केवल कर्म करना, सदाचार और अनुग्रह करने का ही है। शुभ कर्म करना ही अपने आप में एक तृप्ति है। जब तक हम सोते रहेंगे तो हमारा भाग्य भी सोता रहता है और जब हम उठकर चल पड़ते है, तो हमारा भाग्य भी साथ हो लेता है। गीता का सर्वप्रिय और सर्वविदित उपदेश भी यही है कि फल की चिंता किए बिना सत्कर्मो में प्रवृत्त हो जाएं और अपने इस देव दुर्लभ मानव जीवन को सफल करे...
ॐ जय माता दी ॐ .....
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