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Saturday, 11 August 2012

जीवन काल का पूर्वार्ध मौजमस्ती में गुजर जाता है

जीवन काल का पूर्वार्ध मौजमस्ती में गुजर जाता है.मध्याह्न गिले शिकवे,समझोतों और गृहस्थी बसाने में ख़त्म हो जाता है. सबसे कष्टदायक उतरार्ध है.इसमें दोनों को एक दुसरे के सहारे की जरुरत पड़ती है. बिना सहारे के एक कदम भी चलना दुखदायी हो सकता है.
 यदि दोनों है,तब उतरार्ध सुगमता से कट जाता है. दोनों में से एक नहीं है तो बचा हुआ शेष जीवन दूसरा मौत के इंतजार में काटता है.यही सच्चाई है.....

हरे राम हरे राम रम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे

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