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Thursday, 13 September 2012

हमें हवा जैसी आशा चाहिए, आंधी जैसी नहीं......

हमें हवा जैसी आशा चाहिए, आंधी जैसी नहीं......
इंसान उम्मीद के सहारे जीता है। आदमी कुछ खाए बगैर चालीस दिन और एक भी बूंद पानी पिए बगैर तीन दिन तक जिंदा रह सकता है। सांस लेने के लिए हवा न हो तो भी आठ मिनट तक वह खुद को जिंदा रख ले जाता है। लेकिन आशा के बिना आदमी सिर्फ एक सेकंड जिंदा रह सकता है। 
यह अद्भुत कहानी इस बात पर मोहर लगाती है ... जिसमें दो बच्चे एक बंद घर में बिना कुछ खाए - पिए लंबा वक्त गुजार देते हैं - इस उम्मीद में कि उनके मम्मी - पापा अब आते ही होंगे। लेकिन दरवाजा खुलने पर जैसे ही अपनी नई मां के मुंह से वे सुनते हैं कि अरे , ये अब तक जिंदा हैं , "वैसेही उनके प्राण - पखेरू उड़ जाते हैं ".... 

ॐ जय माता दी ॐ

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