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Friday, 14 September 2012

जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है.....

संसार में जन्म लेने के बाद सबको नाना प्रकार के सांसारिक सुख चाहिए। धन, बल और परिवार की आकांक्षा जीवन पर्यन्त बनी रहती है। मनुष्य इनके लिए मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे में जाता है, मन्नतें मांगता है, प्रसाद चढ़ाता है। लेकिन क्या इससे उसे तृप्ति मिलती है? नहीं। सुख-दु:ख रथ के दो पहिए हैं। कभी सुख तो कभी दु:ख। हानि-लाभ, उत्थान-पतन प्रकृति का नियम है। पूरा जीवन कर्मो से बंधा है। जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है.....

ॐ जय माता दी ॐ

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