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Monday, 17 September 2012

यह मन बहुआयामी है।

यह मन बहुआयामी है। अगर हम इसे साध लें, तो यह हमें महान बना देता है और अगर इसके गुलाम हो जाएं तो यह धोखा दे देता है। इसलिए इस मन को प्रभुमय बनाओ। सद्गुरु की कृपा का पात्र बनाओ। यह मन शरीर रूपी मंदिर का एक महत्वपूर्ण पुजारी है। यह परमात्मा तक जाने के मार्ग पर बैठा है। यह मन कभी खाली नहीं बैठता। मन ही मनुष्य की पहचान है। यह मन ही अगर रास्ता दे दे तो सारे प्रश्न अर्थहीन हो जाएं....

ॐ जय माता दी ॐ

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