अगर आप राजनीतिक दलों पर नजर डालें तो पाएंगे कि हर जगह बाप की विरासत को बेटा या बाकी रिश्तेदार संभाल रहे हैं। राष्ट्रीय से लेकर क्षेत्रीय तक, हर पार्टी में यही नजारा है। इस रूप में ये पार्टियां राजनीतिक दल न होकर राजनीति की दुकानें हैं और पार्टी अध्यक्ष का पद वो गल्ला है, जिसे बाप के बाद बेटा संभालता है। जैसे मिठाई की, जूस की, किराने की, नाई की दुकान होती है उसी तरह अलग-अलग पार्टियों के रूप में हिंदुस्तान में राजनीति की भी बहुत सारी दुकानें हैं.....
बोलो गजानंद महाराज की जय.......
बोलो गजानंद महाराज की जय.......
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