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Monday, 24 September 2012

शरीर की ही भांति मन को भी स्वस्थ रखना आवश्यक है।

तुलसीदास जी ने कहा है-
निर्मल मन जन सो मोंहि पावा, मोंहि कपट छलछिद्र न भावा। 
अर्थात निर्मल मन वाले मनुष्य के हृदय में ईश्वर का निवास होता है

शरीर की ही भांति मन को भी स्वस्थ रखना आवश्यक है। सही गलत की पहचान करने की साम‌र्थ्य प्रभु ने हमें दी है, हमें चाहिए कि सही समय पर इसका इस्तेमाल करें। हमें अपने आपको भली भांति पहचान लेना चाहिए कि हमारे स्वस्थ शरीर में स्वच्छ निर्मल आत्मा का भी निवास है, जो परमात्मा का ही एक अंश है, इसी कारण हमारा यह शरीर भी एक मंदिर है। इसीलिए हमें इसकी महत्ता के प्रति सदैव सतर्क रहना चाहिए। 

ॐ जय माता दी ॐ

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