मनुष्य चलता ही रहा है। शुरू से आज तक वह चलता ही आ रहा है। कभी सोचता है, पर झिझककर, कुछ देर रुककर चल देता है, क्योंकि उसके अनुकूल आगे कोई चीज नजर आ रही होती है। पर आज तक वह चलता ही रहा है, बिना सोचे। यह तो वह कभी सोचता ही नहीं कि कहां जा रहा है? क्यों जा रहा है? कहां तक जाएगा? जाने का कोई तात्पर्य भी है क्या? इसलिए एक बार रुककर विचार करो।
सोचो.... तुम कौन हो ? कहां जा रहे हो ?
ॐ जय माता दी ॐ
सोचो.... तुम कौन हो ? कहां जा रहे हो ?
ॐ जय माता दी ॐ
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