शरीर की ही भाति मन:स्थिति को भी स्वस्थ रखना आवश्यक है। सही गलत की पहचान करने की सामर्थ्य परमात्मा ने हमें दी है, हमें चाहिए कि सही समय पर इसका इस्तेमाल करें। यदि हमने अपने आपको भलीभाति पहचान लिया कि हमारे स्वस्थ शरीर में स्वच्छ व निर्मल आत्मा का भी निवास है, जो परमात्मा का ही अंश है इसी कारण हमारा यह शरीर मंदिर है...
ॐ जय माता दी
उसकी सत्तासे हमारी सत्ता पृथक नहीँ है । उसके ज्ञानसे हमारा ज्ञान भिन्न नहीँ हैं । उसके आनन्द से हमारा आनन्द अलग नहीँ है । उससे भिन्न मैँ नहीँ हूँ .......ऐसा भाव सदैव रखे ...निश्चित ही ..जानही तुम्हही तुम्हहिं होई जाई .....की घटना घटेगी ..फिर तो हम सभी कह सकते हैं ....... "मैं ब्रम्ह हूँ "......
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