आपका हृदय सबसे बड़ा मंदिर है। इसी में तो भगवान बसता है। वह तुम्हारे अंदर ही है। इसी बात को तो जानना है। कबीरदास जी ने इसीलिए तो कहा – “कस्तूरी कुंडली बसै , मृग ढूंढ़े बन मांहि”। यानी हमारी हालत उस हिरन की तरह है जो अपनी नाभि में कस्तूरी होने की बात से ही बेखबर रहता है और उसकी तलाश में मारा - मारा फिरता है। हमें इस बात को समझना चाहिए और भगवान को अपने भीतर ही खोजना चाहिए...
ॐ जय माता दी ॐ
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