हम टीवी और अखबारों में कितनी ही चर्चा कर लें, सड़कों पर कितनी ही नारेबाजी कर लें, इस देश और समाज में क्रांति तो क्या एक अदना सा बदलाव करना भी मुश्किल है।इस सत्य का उद्घाटन हमारे नेताओं और मंत्रियों पर बहुत पहले हो चुका है। इसीलिए तो हम आर्थिक बदलाव लाना चाहते हैं, सामाजिक नहीं। पशु से बदतर लोकतंत्र से उम्मीद थी कि स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की अवधारणा का थोड़ा-बहुत एहसास असल जिंदगी में हो पाएगा। लेकिन व्यवस्था का दुश्चक्र हमें एक ही जगह गोल-गोल घुमा रहा है। धन, ऐश्वर्य, विलासिता इस देश की नई संस्कृति है..
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान ....कितना बदल गया इंसान .....
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान ....कितना बदल गया इंसान .....
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